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Sabud khan pahat, Sakir Rupadiya
नूरे बरसे भाडी पे
तेरी सुरत भोली
लगर होगी काली जान
मेने रातु देखी बाट
साथन है गेले लाऊंगी
भाडी मट कारी
दिवाद फोन ओपो को
भेद दिल को ना खोले
प्यार तेरो झूटो
तेर बिन लगेई मन नाय
हटाल घुंघट दौरानी
सौऊँगी कोली भेरे कनी